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Wednesday, April 24, 2013

आज के रावण

बरसो से रावण के पुतले को
पटाखों से फोड़ते आये हैं 
रावण का क्रोध, पुतले पर उतार
सदियों से दशहरा मनाते आये हैं !

तब अयोध्या की साख की
आज कोई और कहानी हैं 

गुस्से की आग में
पुतले फूकने की
प्रथा बड़ी पुरानी हैं !

माँ-बहन का नाम दिया
जिस नारी को
देवी की मूरत में पूजा किये
जिस नारी को 

अपवित्र कर दिया आँचल
उस नारी का
आबरू-बेआबरू कर सर झुकाया
उस नारी का 

अरमानो को उसके झकझोड़ दिया
ऐ मर्द ,
ममता भरा सीना उसका
जब तूने नोच दिया !

कलियुग की बिसाख पर
रची जा रही
रोज़ शर्म की नयी कहानी हैं
बेशर्मो की मिसाल,
एक हमारी राजधानी हैं 

भभकती आग में
रोष जताने की,
चित-चित जलती चिंगारियों से,
उद्घोष अपना सुनाने की
अत्याचारियों का पुतला जलाने की
प्रथा बड़ी पुरानी हैं !
कलियुग की बिसाख पर
रची जा रही
रोज़ शर्म की नयी कहानी हैं!

आज वक़्त हैं,
मशालो में अपनी आग भर लो
मन में लावा-लहू भर लो
हर सीता के प्रतिशोध की
आज बारी आई हैं !
मर्दों के पुतले ख़ाक करने की
जीते-जागते रावणों का दशहरा मानाने की
आज बारी आई हैं....


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