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Monday, April 15, 2013

इक हसीं इत्तेफ़ाक सी
वो पहली मुलाकात
ज़ेहन में अब भी ताज़ा हैं
तेरे लब से निकली हर बात !

इक हसीं इत्तेफ़ाक सी
वो पहली मुलाकात
ज़ेहन में तरो ताज़ा हैं
अपनी तकरारे, बेवक़्त बेबात !

इक हसीं इत्तेफ़ाक सी
वो पहली मुलाकात
ज़ेहन में आज भी चुभता हैं
तेरा पलटना और वापस न आना!

तेरी आमद के इंतज़ार में
अश्क कितने बहा दिए
तेरे अफ़साने लिख-लिख कर
अदीबो ने,
लफ्ज़ कितने गंवा दिए!

बावजूद इसके...
महज़ अशरार न कहना इन्हें
मेरे लफ्ज़ जो गुमसुम हो जाएंगे
जिस कलम से उतर रहे हैं,
उसी स्याही में सूख जाएंगे !

जिन जज्बातों को उकेरने बैठी हूँ ,
वो मुझसे खफा हो जाएंगे !
हबीब बन मेरे साथ थे जो ,
वही, मेरे रकीब बन जाएंगे !

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