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Thursday, May 23, 2013

भई चाँद तू हैं कहाँ ?

भई चाँद तू हैं कहाँ ?

ना  बादलों के पर्दों में हैं
ना सितारों की गर्द में हैं
ना दूर फलक पर हैं

भई चाँद तू हैं कहाँ ?

कितनी बातें हैं सुननी 
कितनी बातें हैं सुनानी
मेरी-तेरी ज़िन्दगी की
दिन-दिन बदलती कहानी

भई चाँद तू हैं कहाँ ?

अब तो काली घटाओं
संग खेलना बंद कर
तेरे आसमां  और
      मेरे सपनो पर बिखरे सैकड़ो सितारों की
मुझसे जी-भर के बात कर

भई चाँद तू हैं कहाँ ?

ना नजारों में हैं
ना मज़ारो पर हैं 
ना मस्जिदों और दरबारों में हैं
खुदा भी तुझको ढूंढ़ रहा हैं

भई चाँद तू हैं कहाँ ?

याद हैं ...
जब गर्म रातों में छत पर,
नींद के इंतज़ार में नर्म बिछौने पर
मुझसे बातें करता था ..
तारों की झिलमिल से, कभी बादलों की महफ़िल से
और कभी रात के सन्नाटों से भागता-फिरता था
इतनी  मशक्कत के बावजूद
मुझसे मिलने आता था !

भई चाँद तू हैं कहाँ ?

इस  बम्बई के आसमां पर
बता मैं तुझको ढूंढ़ु  कहाँ ?
इन इमारतों की ऊँचाईयों में,
बता मैं तुझको ढूंढ़ु  कहाँ ?
मचलती-ठहरती लहरों में,
बता मैं तुझको ढूंढ़ु  कहाँ ?

भई चाँद तू हैं कहाँ ? 
बता मैं तुझको ढूंढ़ु  कहाँ ?