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Tuesday, March 7, 2017

काश  मैं एक लड़का होती।

मैंने एक दुनिया बनायीं अपनी,
इस अनजान शहर में आकर भी, एक मुकाम, एक मकां बनाया
डर लगता हैं खो न जाए वो कही ,
काश  मैं एक लड़का होती।
अपना घर और बड़ा बनाती मैं,
अपनी दुल्हन इसी घर  में लाती मैं,
इस बसी बसाई घर गृहस्ती के साथ ही, नयी ज़िन्दगी की शुरुआत करती मैं।

मगर एक लड़की हूँ मैं,
जैसा सब  कहते हैं, किसी और की अमानत हूँ मैं ,
क्या करुँगी अपनी इस दुनिया का ,
जब जाना होगा किसी और का घर बसाने ,
अपनी ज़िन्दगी को किसी और के नाम करने।

काश मैं एक लड़का होती,
तो मायूसी के बोझ तले , कभी ना दबना पड़ता ,
अपना घर , अपना संसार, तब अपना ही होता 
किसी को इसे, मुझसे छीनने  का हक़ न होता। 

आज ज़माना बदला हैं,
सब कहते तो हैं , 
हमारी सोच बदली हैं,
सब कहते तो हैं। 
मगर शादी करके दूसरे घर जाना होगा,
ये कब बदला हैं ,
अपने माँ-बाप को पराया कर, एक नए परिवार को अपनाना होगा,
ये कब बदला हैं। 

काश मैं लड़का होती,
तो ये सब ना लिख रही होती,
शादी के ख़याल से ही,
कभी खुश, कभी विचलित ना होती.. 

काश मैं लड़का होती।

Dedicated to all of us.. WOMEN... who live their lives, for someone else.