बरसो से रावण के पुतले को
पटाखों से फोड़ते आये हैं
पटाखों से फोड़ते आये हैं
रावण का क्रोध, पुतले पर उतार
सदियों से दशहरा मनाते आये हैं !
सदियों से दशहरा मनाते आये हैं !
तब अयोध्या की साख की
आज कोई और कहानी हैं
आज कोई और कहानी हैं
गुस्से की आग में
पुतले फूकने की
प्रथा बड़ी पुरानी हैं !
पुतले फूकने की
प्रथा बड़ी पुरानी हैं !
माँ-बहन का नाम दिया
जिस नारी को
देवी की मूरत में पूजा किये
जिस नारी को
जिस नारी को
देवी की मूरत में पूजा किये
जिस नारी को
अपवित्र कर दिया आँचल
उस नारी का
आबरू-बेआबरू कर सर झुकाया
उस नारी का
उस नारी का
आबरू-बेआबरू कर सर झुकाया
उस नारी का
अरमानो को उसके झकझोड़ दिया
ऐ मर्द ,
ऐ मर्द ,
ममता भरा सीना उसका
जब तूने नोच दिया !
जब तूने नोच दिया !
कलियुग की बिसाख पर
रची जा रही
रोज़ शर्म की नयी कहानी हैं
बेशर्मो की मिसाल,
एक हमारी राजधानी हैं
रची जा रही
रोज़ शर्म की नयी कहानी हैं
बेशर्मो की मिसाल,
एक हमारी राजधानी हैं
भभकती आग में
रोष जताने की,
चित-चित जलती चिंगारियों से,
उद्घोष अपना सुनाने की
अत्याचारियों का पुतला जलाने की
प्रथा बड़ी पुरानी हैं !
रोष जताने की,
चित-चित जलती चिंगारियों से,
उद्घोष अपना सुनाने की
अत्याचारियों का पुतला जलाने की
प्रथा बड़ी पुरानी हैं !
कलियुग की बिसाख पर
रची जा रही
रोज़ शर्म की नयी कहानी हैं!
रची जा रही
रोज़ शर्म की नयी कहानी हैं!
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