शांत, कोमल, नाज़ुक बचपन
प्यारी-प्यारी यादों से सजा बचपन !
बडप्पन की ऊँगली थामे
धीरे-धीरे कदम बढाता बचपन !
माँ की प्यारी लोरियों में
मासूमियत की नींद लेता बचपन !
खिलौनों, गुड्डे-गुड़ियों की दुनिया मैं
हसता-खेलता, शैतानियों भरा बचपन!
अपने घर पर तो ऐसा ही देखा था बचपन
सड़क के पार लगता हैं, कुछ बदला-बदला सा बचपन!
ईंट-फावड़ा सर पर लादे
मेहनतकश हैं वहाँ का बचपन!
खिलौनों की दुनिया से बहुत दूर,
पसीना बहाता, कठोर-सा बचपन!
पास-ही के चौराहे पर मिलेगा
चाय-पानी पिलाता बचपन!
सड़क के दो किनारों पर जी रहा ....
touching. :(
ReplyDeleteits so touching....:)
ReplyDeletekeep writing manali.... good work!!
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