दूर तक फैला सागर हैं
मन में बसी जिसकी गहराई हैं
किनारा तो कही ओझल हैं
मन में उठी हलचल हैं
यहाँ न तू हैं,न कोई और हैं!
बस मैं और मेरी नाव हैं
सागर में बह चला मेरा मन हैं
यहाँ न तू हैं,न कोई और हैं!
मैं हूँ और ये लहरें हैं
लहरें आती गई जाती गई
हर बार मुझे वो अपना साथी बनती गई
किनारे से जब जब वो मुझे ले जाती
अपनी कोई दास्ताँ सुनाती
और फिर किनारे पर छोड़ जाती
यहाँ न तू हैं,न कोई और हैं!
एक किनारा हैं,सूना पड़ा हैं
रेत हैं,सूखी पड़ी हैं
किसी के कदमो का निशाँ तक नहीं हैं!
यहाँ न तू हैं,न कोई और हैं!
एक आसमा हैं सूना पड़ा हैं
आदी हैं-अनंत हैं, बादलो से घिरा हैं
जैसे कोई चितेरा रंग कर गया हो!
यहाँ न तू हैं,न कोई और हैं!
एक समंदर हैं, सूना पड़ा हैं
शांत हैं, निरंतर बहती लहरें हैं
कोई और इसमें नाव नहीं हैं
इंतज़ार हैं तो बस....कुछ कदमो के निशानों का.....किसी चितेरे का....किसी और नाव का!!!!!!!
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