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Tuesday, March 7, 2017

काश  मैं एक लड़का होती।

मैंने एक दुनिया बनायीं अपनी,
इस अनजान शहर में आकर भी, एक मुकाम, एक मकां बनाया
डर लगता हैं खो न जाए वो कही ,
काश  मैं एक लड़का होती।
अपना घर और बड़ा बनाती मैं,
अपनी दुल्हन इसी घर  में लाती मैं,
इस बसी बसाई घर गृहस्ती के साथ ही, नयी ज़िन्दगी की शुरुआत करती मैं।

मगर एक लड़की हूँ मैं,
जैसा सब  कहते हैं, किसी और की अमानत हूँ मैं ,
क्या करुँगी अपनी इस दुनिया का ,
जब जाना होगा किसी और का घर बसाने ,
अपनी ज़िन्दगी को किसी और के नाम करने।

काश मैं एक लड़का होती,
तो मायूसी के बोझ तले , कभी ना दबना पड़ता ,
अपना घर , अपना संसार, तब अपना ही होता 
किसी को इसे, मुझसे छीनने  का हक़ न होता। 

आज ज़माना बदला हैं,
सब कहते तो हैं , 
हमारी सोच बदली हैं,
सब कहते तो हैं। 
मगर शादी करके दूसरे घर जाना होगा,
ये कब बदला हैं ,
अपने माँ-बाप को पराया कर, एक नए परिवार को अपनाना होगा,
ये कब बदला हैं। 

काश मैं लड़का होती,
तो ये सब ना लिख रही होती,
शादी के ख़याल से ही,
कभी खुश, कभी विचलित ना होती.. 

काश मैं लड़का होती।

Dedicated to all of us.. WOMEN... who live their lives, for someone else. 

Wednesday, August 24, 2016

I am different otherwise.....

I am different when u r around 
&
I am different otherwise

I am different in my comfort zone 
&
I am different otherwise

I am different when I dream 
&
I am different otherwise

I am different when I soak myself into the past 
&
I am different otherwise

I am quiet calm shy 
&
I am different otherwise

I am a party girl 
&
I am different otherwise

I might be a different 'me' sometime
But
I will be a different 'me' otherwise... 

So don't judge me that I am different at times..
Coz'
I might be different otherwise....

Wednesday, March 25, 2015

मंज़िल

क्या मंज़िल वो हैं जो मिल जाए
नहीं
क्या मंज़िल वो हैं जिसे हासिल किया जाए
हरगिज़ नहीं
जो मिलकर भी ना मिले, वो हैं मंज़िल
हर मंज़िल पर पहुंचकर, इक नया आगाज़ हैं मंज़िल
जो लगे बहुत करीब, पर इक मृगतृष्णा हैं मंज़िल
जिसे पाने के ख़्वाब लिए फिरते हैं, वो हैं मंज़िल

दरसल, इक ख़्वाब ही हैं मंज़िल

ना सच और ना गुमां हैं ये मंज़िल
हज़ार एहतमामों के बावजूद, लाहासिल हैं मंज़िल !!!!! 

Wednesday, July 23, 2014

आदत

भीड़ की आदत हो गयी
की अब तन्हाई याद नहीं

सच्ची झूठीं  मुस्कानों की आदत हो गयी
की अब अश्क तक याद नहीं

भागने की आदत हो गयी
की अब चलना याद नहीं

सख्त अंधेरो की आदत हो गयी
की अब शाम की रंगीनियत याद नहीं

काम की इतनी आदत हो गयी
की अब बेमतलब सी कोई बात याद नहीं

रातों को जागने की इतनी आदत हो गयी
की अब कोई सपना याद नहीं

ज़िन्दगी में इतनी नयी आदतें हो गयी
की अब पिछली कोई याद… याद नहीं

Tuesday, October 29, 2013

चेहरा

किसी घूँघट के पीछे कोई चेहरा
किन्हीं आँखों पर काजल का पहरा
ट्रेन की खिड़की पर हवा खाता कोई चेहरा 
अपने दाम को तरसता हर चेहरा!

किसी पर छपी गहरी वक़्त कि लकीरें
किसी पर चमकती शौंख जवानी
हर चेहरा कुछ कहता हैं
अलग-अलग भाव में बिकता हैं !

हर चेहरे के पीछे छुपा कोई और चेहरा
हर चेहरे पर सजा... जज़बातों का सहरा
चेहरो कि तो बड़ी भीड़ हैं यहाँ
.... अपना समझने वालो का बड़ा मोल हैं यहाँ !

कोई चौराहे पर सजता है… रातों में बिकता हैं
कोई ठेठ बना रहता हैं
इस ज़िन्दगी के बाज़ार में
हर चेहरा अपनी कीमत ..  अपनी पहचान आईने में तकता हैं !!!!

Thursday, May 23, 2013

भई चाँद तू हैं कहाँ ?

भई चाँद तू हैं कहाँ ?

ना  बादलों के पर्दों में हैं
ना सितारों की गर्द में हैं
ना दूर फलक पर हैं

भई चाँद तू हैं कहाँ ?

कितनी बातें हैं सुननी 
कितनी बातें हैं सुनानी
मेरी-तेरी ज़िन्दगी की
दिन-दिन बदलती कहानी

भई चाँद तू हैं कहाँ ?

अब तो काली घटाओं
संग खेलना बंद कर
तेरे आसमां  और
      मेरे सपनो पर बिखरे सैकड़ो सितारों की
मुझसे जी-भर के बात कर

भई चाँद तू हैं कहाँ ?

ना नजारों में हैं
ना मज़ारो पर हैं 
ना मस्जिदों और दरबारों में हैं
खुदा भी तुझको ढूंढ़ रहा हैं

भई चाँद तू हैं कहाँ ?

याद हैं ...
जब गर्म रातों में छत पर,
नींद के इंतज़ार में नर्म बिछौने पर
मुझसे बातें करता था ..
तारों की झिलमिल से, कभी बादलों की महफ़िल से
और कभी रात के सन्नाटों से भागता-फिरता था
इतनी  मशक्कत के बावजूद
मुझसे मिलने आता था !

भई चाँद तू हैं कहाँ ?

इस  बम्बई के आसमां पर
बता मैं तुझको ढूंढ़ु  कहाँ ?
इन इमारतों की ऊँचाईयों में,
बता मैं तुझको ढूंढ़ु  कहाँ ?
मचलती-ठहरती लहरों में,
बता मैं तुझको ढूंढ़ु  कहाँ ?

भई चाँद तू हैं कहाँ ? 
बता मैं तुझको ढूंढ़ु  कहाँ ?

Thursday, May 16, 2013

आदत प्याले की लग जाती
तो हालत बुरी हो जाती!

उससे से तो बच गया
तुझसे बचने को कहाँ भागु ?

प्याले तो छूट गए, तेरी आदत लगा गए
मैं अपनी आदतों से दूर कहाँ भागु?

दुनिया तुझमे सिमटी हैं अपनी
अपनी दुनिया से दूर कहाँ भागु ?

अब किसी रंगीन पानी की क्या ज़रूरत
तेरी आदते काफी हैं
तू ही मेरी रंगीनियत और हया हैं
ये रंगीनियत और हया छोड़ मैं कहाँ भागु ?
बता, मैं तुझसे दूर कहाँ भागु ?