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Wednesday, March 25, 2015

मंज़िल

क्या मंज़िल वो हैं जो मिल जाए
नहीं
क्या मंज़िल वो हैं जिसे हासिल किया जाए
हरगिज़ नहीं
जो मिलकर भी ना मिले, वो हैं मंज़िल
हर मंज़िल पर पहुंचकर, इक नया आगाज़ हैं मंज़िल
जो लगे बहुत करीब, पर इक मृगतृष्णा हैं मंज़िल
जिसे पाने के ख़्वाब लिए फिरते हैं, वो हैं मंज़िल

दरसल, इक ख़्वाब ही हैं मंज़िल

ना सच और ना गुमां हैं ये मंज़िल
हज़ार एहतमामों के बावजूद, लाहासिल हैं मंज़िल !!!!!