श्री गणेशा के जयकारे वातावरण में गूँज रहे हैं ! आज गणेश चतुर्थी हैं तो लोगों में एक अलग ही उत्साह हैं ! मेरे घर के सामने जो मुख्य मार्ग हैं वहां भक्तो की टोलिया सुबह से ही अपने प्रिय भगवान् को ट्रको, बसों, छोटे बड़े वाहनों, ठेलों और कंधो पर बिठाकर ले जा रहे हैं!
रास्ते के किनारे पर बेठे छोटू और चिंकी , जो कभी कभी हमारी कालोनी में खाना पानी मांगने आया करते हैं, वो इस उत्सव को बड़ी कौतुहल भरी निगाहों से देख रहे थे! वे दोनों पास ही में अकेले रहते थे! वो आसपडोस से मांग कर खा लिया करते और पेड़ की छाया में रात बिता दिया करते ! लेकिन जब भी कोई उत्सव जैसा माहौल होता वो वही रास्ते रास्ते पर खड़े होते और उसी मे खुश हो जाते !
मार्ग पर अब आवाजाही बढ़ने लगी हैं ! एक भक्तों की टोली गाजे बाजे सहित अपने इष्ट देव को लिए आ रही हैं ! ये हमारी बाल कल्याण समिती के सदस्य हैं ! उन लोगो के साथ जाने के लिए छोटू और चिंकी आगे बढे! लेकिन टोली के साथ चल रहे स्वयंसेवकों ने उन को पुनः किनारे पर ला खड़ा किया !
मुझे देखने में थोडा अचरज अवश्य हुआ....परन्तु शायद अपेक्षित भी यही था !
छोटू और चिंकी फिर उसी स्थान पर खड़े हैं ! अगली टोली थी कुछ ऐसे युवाओं की जो प्रायः किसी राजनैतिक दल विशेष से सम्बंधित थे ! इस कारण उनके उदघोष में, उनको नारों में...गणनायक से अधिक जननायक का ही नाम था ! पिछले चुनावों में इसी दल ने गरीबी, भुखमरी, और समाज कल्याण जैसे विषयों को अपना मुद्दा बनाकर वोट बैंक खडा किया था ! लेकिन आज बाल-मन की एक छोटी सी इच्छा पूरी करने का सामर्थ्य नहीं था उनमे, इसलिए छोटू और चिंकी वहाँ से भी भगा दिए गए !
फिर आई एक अमीरों की टोली! टोली क्या, वो तो महज़ चंद कारो का एक काफिला भर थी! सबसे आगे चल रही कार के साउंड सिस्टम में गणपति के भजन चल रहे थे ! न कोई शोर गुल, न कोई हल्ला, न भीड़- जितनी व्यवस्थित तरीके से वो आये थे, उसी तरह चले भी गए! छोटू और चिंकी चूंकि इस व्यवस्था का हिस्सा भी नहीं थे! इसलिए वे वही....रास्ते के किनारे पर ही रह गए!
यह देखकर मुझे इस बात पर और भी विश्वास हो गया कि " कथनी और करनी में कितना अंतर हैं" ! हम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, भाषण देते हैं, चर्चाएं करते हैं और कभी-कभी वाद-विवाद भी कर लेते हैं ! लेकिन जब बात असल जिंदगी पर आती हैं, तो हमारा सारा ज्ञान, वो सारी बातें...हमारी सोच की एक छोटी सी डिबियां में बंद हो कर रह जाती हैं !
सोचते सोचते शायद बहुत वक़्त निकल गया, भक्तों की कई टोलियाँ निकल गई...छोटू और चिंकी अब भी वही खड़े थे!
एक बार फिर जयकारे उठे, ढोल नगाड़े बज उठे! युवाओं और बच्चों की एक टोली नाचते गाते हुए चली आ रही थी! श्री गणेश के भजनों से वातावरण एक बार फिर गूंज उठा था! लेकिन इस बार छोटू और चिंकी खड़े नहीं हुए, वे वही बैठे रहे ! युवा और बच्चे गणपति की मूर्ती के आगे चल रहे थे और प्रसाद वितरित कर रहे थे ! वे सभी संपन्न परिवारों के जान पड़ते थे, जो शायद यु तो घर में बंद हो कंप्यूटर और टीवी के सामने बैठ आखें फोड़ा करते होंगे लेकिन आज वे इस उत्सव में भागीदार थे ! इस आनंदोत्सव के दिन वे सड़कों पर थे और लोगों में खुशियों का प्रसाद बाँट रहे थे!
छोटू और चिंकी को दुखी और उदास बैठे देख, वे इनके पास आये...प्रसाद खिलाया और दोनों को अपनी टोली का हिस्सा बनाकर साथ ले गए!
ये दृश्य मेरे लिए अचरज से कही अधिक अपेक्षित था!
इश्वर में आस्था, श्रद्धा और भक्ति.....बप्पा के लिए सच्चा नेवैद्य ...प्रायः इसी को कहते हैं !!!!!!!!!!!