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Monday, May 21, 2012

बचपन

शांत, कोमल, नाज़ुक बचपन 
प्यारी-प्यारी यादों से सजा बचपन !
बडप्पन की ऊँगली थामे 
धीरे-धीरे कदम बढाता बचपन !
माँ की प्यारी लोरियों में 
मासूमियत की नींद लेता बचपन !
खिलौनों, गुड्डे-गुड़ियों की दुनिया मैं 
हसता-खेलता, शैतानियों भरा बचपन!

अपने घर पर तो ऐसा ही देखा था बचपन 
सड़क के पार लगता हैं, कुछ बदला-बदला सा बचपन!

ईंट-फावड़ा सर पर लादे 
मेहनतकश हैं वहाँ का बचपन!
खिलौनों की दुनिया से बहुत दूर,
पसीना बहाता, कठोर-सा बचपन!
 पास-ही के चौराहे पर मिलेगा 
चाय-पानी पिलाता बचपन!

सड़क के दो किनारों पर जी रहा ....
दो अलग-अलग जहानों सा बचपन  
 

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